अपनी याचिका में डा. हिरालाल अलावा ने कहा है कि राज्य सरकार आदिवासियों से जुड़े संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन पिछले 70 सालों से नहीं कर रही है, जिससे अंतिम पंक्ति में खड़ा आदिवासी समाज विकास से कोसों दूर हो गया है।

उन्होंने यह भी कहा है कि संविधान निर्माताओं ने आदिवासियों के कल्याण, अच्छे प्रशासन एवं अनुसूचित क्षेत्रों में नियंत्रण के लिए पांचवीं अनुसूची संबंधित विशेष प्रावधान संविधान में किया है। डा. अलावा ने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि संविधान में सम्मिलित पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू नहीं करने से आदिवासी समाज का विकास अवरुद्ध हो गया है एवं आदिवासी समाज अन्य समाज की अपेक्षा पिछड़ता चला गया है। प्रदेश के आदिवासी बहुल ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। उन्होंने याचिका में सवाल उठाया है कि आखिर क्या कारण है कि आजादी के 7 दशक बाद भी आदिवासी समाज अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित हैं?आदिवासी मंत्रणा परिषद में भी उठाया पांचवीं अनुसूची का मुद्दाज्ञातव्य है कि डा. अलावा पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार में मध्य प्रदेश के आदिवासी मंत्रणा परिषद (ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल) के सदस्य थे। उन्होंने  9 जनवरी, 2020 को आदिवासी मंत्रणा परिषद की बैठक में पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों के पालन से संबंधित सवाल उठाए थे। इस बैठक में उन्होंने मांग की थी कि रेत, पत्थर, ग्रेनाइट आदि गौण खनिजों के खनन हेतु प्रदेश के 89 आदिवासी बहुल प्रखंडों की समस्त खदानें आदिवासी व्यक्तियों/आदिवासी समितियों को देने तथा अन्य खदानों में आदिवासियों के लिए 22 प्रतिशत आरक्षण दी जाय।  साथ ही अनुसूचित क्षेत्र की तृतीय और चतुर्थ वर्ग की सभी सरकारी पदों पर स्थानीय आदिवासी को नियुक्त करने, अनुसूचित क्षेत्र में सड़क निर्माण, कंस्ट्रक्शन, टोल टैक्स वसूली, पार्किंग, परिवहन, खनन समेत सभी परियोजनाओं में होने वाले कंस्ट्रक्शन, रख-रखाव, प्रबंधन का ठेका इत्यादि में स्थानीय आदिवासी समुदाय या आदिवासी समितियों एवं ग्रामसभा समितियों को देने का सवाल उठाया था। आदिवासियों के आर्थिक विकास हेतु उन्होंने अनुसूचित क्षेत्र के सभी बाजारों, व्यापार, खरीद-बिक्री, आयात-निर्यात का कार्यान्वयन एवं प्रबंधन का अधिकार पंचायतों, आदिवासी सहकारी समितियों एवं ग्रामसभा समितियों को देने, आदिवासी भूमि के गैर-आदिवासी को अहस्तांतरणीय बनाने, लार्ज साइज्ड आदिवासी मल्टी-परपस को-आपरेटिव सोसायटीज (लैम्प्स) की प्रक्रिया को आसान बनाने, शैक्षणिक ढांचे को विशेष तरीके से मजबूत बनाने, आदिवासी छात्रों में ड्राप-आउट की प्रवृति को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए जाने समेत अनेक सुझाव दिए थे।

डा. हिरालाल अलावा, विधायक, मध्य प्रदेश विधानसभा व जयस के संरक्षक

हालांकि मंत्रणा परिषद की बैठक के दो महीने बाद ही कमलनाथ सरकार गिर गई, लेकिन डा. अलावा के सुझावों पर न तो कमलनाथ सरकार में कोई फैसला हुआ और ना ही वर्तमान की शिवराज सरकार की तरफ से कोई पहल हो सका है।

मध्य प्रदेश के ये जिले हैं पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल

पांचवीं अनुसूची यानि अनुसूचित क्षेत्रों की प्रशासन व्यवस्था, जो देश के दस राज्यों – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, झारखंड, ओड़िशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र एवं हिमाचल प्रदेश – के अंतर्गत आनेवाले अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होते हैं। पांचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों को छोड़कर देश के सभी राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों पर राष्ट्रपति के आदेश से लागू किया जा सकता है। पांचवीं अनुसूची के तहत मध्यप्रदेश के अलीराजपुर, अनुपपुर, बड़वानी, बालाघाट, बेतुल, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, धार, डिंडोरी, होशंगाबाद, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, मंडला, रतलाम, सिवनी, शहडोल, श्योपुर, सीधी, उमरिया जिले के 89 आदिवासी विकासखंड आते हैं।

क्या हैं पांचवीं अनुसूची के प्रावधान?

भारत के शासन और प्रशासन के लिए जो संवैधानिक प्रावधान हैं, वे बाईस भाग एवं बारह अनुसूचियों में विभाजित हैं। इन्हीं 12 अनुसूचियों में शामिल है पांचवीं अनुसूची यानि अनुसूचित क्षेत्रों की प्रशासन व्यवस्था संबंधी प्रावधान।

अनुसूचित क्षेत्रों की प्रशासन व्यवस्था पूरी तरह से राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधीन होता है। जिसमें राज्यों के राज्यपालों को अनुसूचित क्षेत्रों में शांति एवं सुशासन के लिए विनियम बनाने यानि नियंत्रित करने या दिशा-निर्देश जारी करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। इस संबंध में राज्यपाल एक ट्राईबल एडवायजरी काउंसिल यानि आदिवासी मंत्रणा परिषद का गठन करेगा और उसके सलाह पर अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन करेगा। साथ ही, प्रत्येक वर्ष अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राज्यपाल राष्ट्रपति को प्रतिवेदन भी देगा।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इंदौर बेंच का परिसर

पांचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की अलग-अलग भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित किया गया है। जिसमें केंद्र सरकार के हिस्से में कानून बनाने की जिम्मेदारी तथा राज्य सरकारों के हिस्से में इन कानूनों को लागू करने की जिम्मेदारी हैं। संविधान के इन सशक्त प्रावधानों से प्राप्त शक्ति से इन क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक एवं राजनैतिक समृद्धि सुनिश्चित करना ही इसका उद्देश्य है।

पेसा कानून से मिली प्रावधान को मजबूती

बताते चलें कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में 73वां और 74वां संवैधानिक संशोधन लाने के बाद क्रमशः पंचायत राज व्यवस्था और नगर पालिकाओं के स्थापना पर भी संवैधानिक रोक लगाया गया है। यानि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में पंचायत राज व्यवस्था एवं नगरपालिका व्यवस्था [संविधान का भाग 9 (क)] लागू नहीं हो सकता। जिसके लिए अनुच्छेद 243 ड (4) ख के आलोक में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन-नियंत्रण के लिए एक विशेष कानून बनाया गया है, जिसे पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) कहते हैं।

इस अधिनियम 1996 की धारा 3 में वर्णित है कि विशेष पंचायतों के विशेष प्रावधानों को अपवादों और उपांतरणों के अधीन अनुसूचित क्षेत्रों [अनुच्छेद 244(1)] पर विस्तार किया गया है। वहीं धारा 4 में कहा गया है कि संविधान में सभी बातों के होते हुए भी राज्य विधान मंडल उक्त अधिनियम 1996 के असंगत कोई भी कानून नहीं बनाएगा। जबकि धारा 4(ण) में लिखा है कि अनुसूचित क्षेत्रों के जिलों के स्तर पर, पंचायतों के प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने के क्रम में, राज्य विधान मंडल संविधान की छठी अनुसूची के पैटर्न को अनुसरण करेगा।

अर्थात स्वशासी जिला परिषद को स्थापित करेगा और निचले स्तर पर धारा 4 (ड) के आलोक में आदिवासी ग्राम सभा का गठन अपवादों और उपांतरणों के अधीन करेगा। इस प्रकार पांचवीं अनुसूची क्षेत्र को पेसा अधिनियम के तहत स्वशासी होने हेतु कई अधिकार देकर और सशक्त बना दिया है। उपर्युक्त आदिवासी ग्राम सभा के पास कुल सात (7) शक्तियां निहित हैं।[1]बहरहाल, डॉ. अलावा ने याचिका में कहा है कि उपर्युक्त सभी प्रावधानों का राज्य सरकार द्वारा अनदेखी की गई है, जिसके अनुपालन के लिए न्यायालय द्वारा आदेश जारी करना आवश्यक है। साथ ही अनुसूचित क्षेत्रों में स्थापित ग्राम पंचायत व्यवस्था और नगर पालिकाओं को भंग कर आदिवासी ग्राम सभा तथा स्वशासी जिला परिषद (छठी अनुसूची की तर्ज पर) का गठन किया जाना चाहिए तथा पेसा कानून का सख्ती से अनुपालन होना चाहिए। संविधान की पांचवीं अनुसूची अनुच्छेद 244(1) से अधिसूचित क्षेत्रों में राज्य शासन का कोई भी नियम शून्य है, अतः नगरीय निकायों का गठन भी असंवैधानिक है।


[1] (i) मद्यनिषेध प्रवर्तित करने या मादक द्रव्य के विक्रय और उपभोग को विनियमित या निर्बंधित करने की शक्ति।
(ii)  गौण वन उपज का स्वामित्व,
(iii) अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अन्य संक्रमण को निवारित करने और किसी अनुसूचित जनजाति की विधि विरुद्धतया अन्य संक्रमित भूमि को प्रत्यावर्तित करने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करने की शक्ति,
(iv) ग्राम बाजारों का, चाहे वे किसी भी नाम से ज्ञात हों, प्रबंध करने की शक्ति,
(v) अनुसूचित जनजातियों को धन उधार देने पर नियंत्रण रखने की शक्ति,
(vi) सभी सामाजिक सैक्टरों में संस्थाओं और कृत्यकारियों पर नियंत्रण रखने की शक्ति,
(vii) स्थानीय योजनाओं पर और ऐसी योजनाओं के लिए जिनके अंतर्गत जनजातीय उप-योजनाएं हैं, संसाधनों पर नियंत्रण रखने की शक्ति। पुनः अधिनियम 1996 की धारा 4(घ), (ट), (ठ), जिनके द्वारा स्वाशासी जिला परिषद को माइनिंग लीज और गौण खनिज आक्शन पर लीज ग्रांट करने का अधिकार है ।

 

ABOUT THE AUTHOR